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आचार्य रामगोपाल शुक्ला। एस्ट्रो धर्म। भविष्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के अंशावतार श्री परशुराम जी का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को रात्रि के प्रथम चरण ( प्रदोष काल ) मे हुआ था , तदनुसार 25 अप्रैल शनिवार को भगवान परशुराम का जन्म उत्सव मनाना शुभ होगा । पूर्वान्ह व्यापिनी अक्षय तृतीया के पर्व 26 अप्रैल रविवार को रोहिणी नक्षत्र कालीन मनाना विशेष प्रसस्त होगा । यह स्वयं सिद्धि महूर्त तिथि है । इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में कई जाती है क्योंकि त्रेतायुग ( कल्प भेद से सतयुग ) का शुभारंभ इसी तिथि से हुआ था । इस कारण इस दिन किये गये जप , तप , ध्यान , यज्ञ , दान आदि शुभ कार्यो का अक्षुण्ण ( अक्षय ) फल होता है । इस दिन तीर्थ स्नान , समुद्र स्नान , गंगा स्नान , श्री विष्णु सहस्र नाम का पाठ , ब्राह्मण भोजन , कलश , वस्त्र , फल , चावल आदि अनाज एवं मिष्ठान , दक्षिणा सहित दान यथाशक्ति करने से अनंत गुना फल होता है !! Aaj Ki Delhi.in/ The 24x7 news/ Indian news Online/ Prime News.live/Astro Dharm/ Yograaj Sharma/ 7011490810
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अध्यात्म जगत में वे ही गुरु हो सकते हैं, जो मनुष्य को ऊपर उठा कर आत्मिक उज्ज्वलता को प्रकाशित कर सकें। इसलिए गुरु वे ही हो सकते हैं, जो महाकाल हैं। अन्य कोई गुरु नहीं हो सकता। और इस आत्मिक स्तर पर गुरु होने के लिए उन्हें साधना का प्रत्येक अंग, प्रत्येक प्रत्यंग, प्रत्येक क्षुद्र, वृहत अभ्यास सभी कुछ सीखना होगा, जानना होगा और सिखलाने की योग्यता रखनी होगी। इसे केवल महाकाल ही कर सकते हैं, अन्य कोई नहीं। जिन्होंने अपने जीवत्व को साधना द्वारा उन्नत कर शिवत्व में संस्थापित किया है, वे ही काल हैं। और जो स्वयं करते हैं तथा दूसरे को उसके बारे में दिग्दर्शन कराने का सामथ्र्य रखते हैं, वे ही महाकाल हैं। अतीत में महाकाल शिव आए थे और आए थे कृष्ण। गुरु होने के लिए महाकाल होना होगा, साधना जगत में सूक्ष्म विवेचन कर सभी चीजों की जानकारी रखनी होगी। केवल इतना ही नहीं, उन्हें शास्त्र-ज्ञान अर्जन करने के लिए जिन सभी भाषाओं को जानने की आवश्यकता है, उन्हें भी जानना होगा। अर्थात् केवल साधना सिखलाने के लिए ही नहीं, वरन् व्यावहारिक जगत के लिए भी सम्पूर्ण तथा चरम शास्त्र ज्ञान भी उनमें रहना होगा और तभी वे अध्यात्म जगत के गुरु की श्रेणी में आएंगे। जो साधना अच्छी जानते हैं, दूसरे की सहायता भी कर सकते हैं, किन्तु उनमें पांडित्य नहीं है, शास्त्र ज्ञान नहीं है, भाषा ज्ञान नहीं है तो वे आध्यात्मिक जगत के भी गुरु हो नहीं सकेंगे। गुरु अगर कहता है कि ‘वैसा करोगे, जैसा मैं कहूंगा’ तो उसे यह भी तो बताना होगा कि शिष्य वैसा क्यों करे। इसी के लिए शास्त्र की उपमा की आवश्यकता पड़ती है।
शास्त्र क्या है? शास्त्र कह कर एक मोटी पुस्तक दिखला दी, ऐसा नहीं है। ‘शासनात् तारयेत् यस्तु स: शास्त्र: परिकीर्तित:।’ जो मनुष्य पर शासन करता है तथा उसके छुटकारे का, मुक्ति का पथ दिखला देता है, उसे शास्त्र कहते हैं। इसलिए गुरु को शास्त्र पंडित होना होगा, अन्यथा वे मानव जाति को ठीक विषय का ज्ञान नहीं दे सकेंगे। ‘शास्त्र’ माने वह वेद, जो मनुष्य को शासन द्वारा रास्ता दिखाए। शास्त्र माने जो मनुष्य को सत् पथ पर चलाए, जिस पथ पर चलने से मनुष्य को ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होगी और कल्याण होगा।
अब यह शासन क्या है? ‘शासन’ यानी जिसे शास्त्र में अनुशासन कहा गया है। ‘हितार्थे शासनम् इति अनुशासनम्।’ कल्याण के लिए जितना शासन किया जाता है, उस विशेष शासन को कहा जाता है अनुशासन। अध्यात्म गुरु को जिस तरह अपनी साधना स्वयं जाननी होगी और दूसरे को उसे बताने का सामथ्र्य रखना होगा, उसी तरह शासन करने का सामथ्र्य रखना होगा। साथ ही पे्रम, ममता, आशीर्वाद करने का भी सामथ्र्य
रखना होगा।
केवल शासन ही किया, प्रेम नहीं किया तो ऐसा नहीं चलेगा। एक साथ दोनों ही चाहिए। और शासन की मात्रा कभी भी प्रेम की सीमा का उल्लंघन न करने पाए। तभी होंगे वे आध्यात्मिक जगत गुरु। ये सारे गुण ईश्वरीय सत्ता में ही हो सकते हैं।


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बीकानेर। अमेरिका के राष्ट्रपति बाराक ओबामा व देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक मार्च को बीकानेर आ रहे है। इन  दोनों के बीच यहां कई समझौतों पर हस्ताक्षर होंगे और दोनों देशों के मध्य व्यापारिक,समसामयिक हालातों पर चर्चा की  जायेगी। मौका होगा पुष्करणा स्टेडियम में आयोजित होने वाले फागणिया फुटबाल मैच का। एक मार्च को पुष्करणा  स्टेडियम के हरे भरे मैदान में हो जा रहे इस फुटबाल मैच में बॉलीबुड व हॉलीबुड के नायक नायिकाएं भी अपने खेल का  हुनर दिखायेगे। वही देव लोग से भी कई देवी देवता,पुष्करणा स्टेडियम में धरती लोग के लोगों के साथ फुटबाल खेलेंगे   तथा यम लोग से भी अनेक राक्षस फुटबाल में अपना जौहर दिखायेगें। इस आयोजन को लेकर शहर के होली के रसियों  ने तैयारियां शुरू कर दी है। फागणिया फुटबाल समिति के सचिव सीताराम कच्छावा ने बताया कि इस मैच को लेकर  युवाओं में खासा उत्साह है। विभिन्न श्वांग रूप धारण किये हुए युवा से बुर्जुग फिल्मी जगत की सनी लियोन,आलिया  भट्ट,दीपिका पादुकोण,अनुष्का शर्मा इत्यादि के साथ फुटबाल खेलेंगे। इनके अलावा विस्फोटक बल्लेबाज विराट कोहली,  शिखर धवन और धोनी बल्ला पकड़े फुटबाल के पीछे भागेंगे। महिला व पुरुष स्वांगों के बीच होने वाले इस ऐतिहासिक  फुटबाल मुकाबले में रावण, कंस और यमराज पुरूषों की टीम की अगुवाई करेंगे जबकि पर वसुन्धरा राजे,सुषमा  स्वराज,स्मृति ईरानी पर महिला टीम की रक्षा पंक्ति का भार होगा। बृजु भा व्यास की स्मृति में आयोजित होने वाले इस  मैच को लेकर शहर वासियों में खासा उत्साह है। अवकाश का दिन होने के कारण बड़ी संख्या में शहरवासी भी रंगबिरंगी  पाग पहने मैदान में हूटिंग करते नजर आयेंगे। आयोजन समिति के अध्यक्ष कन्हैया लाल रंगा,शंकर पुरोहित, भरत  पुरोहित, विजय शंकर हर्ष, गोपाल कृष्ण हर्ष व्यवस्थाएं संभालेंगे।
फागोत्सव शनिवार को 
आचार्य धरणीधर महादेव मंदिर प्रांगण में शनिवार को फागोत्सव आयोजन होगा। धरणीधर महादेव मंदिर विकास एवं  पर्यावरण समिति कें दुर्गा शंकर आचार्य ने बताय कि श्रीजी उपासना संगम, आचार्य धरणीधर ट्रस्ट, भक्त मंडल, सनातन  धर्म, सत्संग समिति के सयुक्त तत्वाधान में होने वाले फागोत्सव कार्यक्रम में धरणीधर महादेव का भव्य श्रृंगार अजमेंर से  मंगवाएॅ गुलाब के पुष्पों से किया जायेगा। होली ब्रज गीतों के रसिया गोपाल बिस्सा एंड पार्टी, लक्ष्मीनाथ मंदिर, फांग  मंडल, एवं महिला सदस्यों द्वारा फागोत्सव संगीत कार्यक्रम का आयोजन किया जायेगा। कार्यक्रम के सफल संचालन हेतु  विभिन्न समितियों का गठन किया है। फागोत्सव कार्यक््रम आयोजन ट्रस्ट अध्यक्ष रामकिशन आचार्य के निर्देशन में  आयोजित किया जायेगा।इस अवसर पर एक क्विटल गुलाब के पुष्प, रंग, गुलाब, सुगंध से भगवान को फाग खिलाया  जायेगा।
फागोत्सव निकली गेर
खेलनी सप्तमी के अवसर पर बुधवार को नागणेचेजी मंदिर में शाकद्वीपीय समाज के लोगों द्वारा फागोत्सव का आयोजन  हुआ। इस अवसर पर नागणेचेजी की प्रतिमा का अभिषेक पूजन कर फाग खिलाई गई। इस दौरान होली धमाल व फाग  गीतों की प्रस्तुतियां दी। परम्परानुसार शाकद्वीपीय समाज की गेर निकली। जो शहर के विभिन्न मार्गोंं से होती हुई सेवग  चौक तक पहुंची। इस दौरान सामूहिक भोज का आयोजन सामाजिक स्तर पर सूर्य भवन-नाथसागर, मुन्धाड़ा सेवगों की  बगेची-नत्थूसर गेट, हंसावतों की तलाई-गंगाशहर रोड, शिवशक्ति भवन-डागों चौक, जेनेश्वर भवन-जसोलाई तलाई व  मदन मोहन भवन-मोहताचौक में आयोजित हुए।


थम्भ पूजन 26 को
 होली के अवसर पर होने वाले आठ दिवसीय कार्यक्रमों का शुभारंभ 26 को शहर के विभिन्न मोहल्लों में सदियों पुरानी  परंपरा के साथ होगा। थम्भ पूजन परंपरा के क्रम में कीकाणी व्यासों का चौक, लालाणी व्यासों का चौक, चौथाणी ओझा  चौक व सुनारों की गुवाड़ में वेदोक्त मंत्रोचारण के साथ पहले भूमि पूजन, थम्भ शुद्विकरण व थम्भस्थ देवताओं का पूजन  कर थम्भ रोपण किया जायेेगा। थम्भ रोपण और पूजन के दौरान डफ पर होली धमाल गीतों की प्रस्तुतियां दी जायेगी।
 होलिका महोत्सव 2 मार्च को
 श्री माहेश्वरी नवयुवक मण्डल का होलिका महोत्सव व प्रीतिभोज कार्यक्रम 2 मार्च को नृसिंह भवन में आयोजित होगा।  मण्डल अध्यक्ष सुनील सारड़ा ने बताया कि कार्यक्रम शाम 7 बजे से रात 10 बजे तक चलेगा । चंग व नगाड़ों की थाप पर Aaj Ki Delhi.in/ The 24x7 news/ Indian news Online/ Prime News.live/Astro Dharm/ Yograaj Sharma/ 7011490810

जयपुर - राजस्थान सरकार द्वारा वरिष्ठ नागरिको  के लिए चलाई जा रही तीर्थ यात्रा की स्पेशल ट्रेन तिरुपति  २७  फरवरी को जाएगी। तीर्थ यात्रियों को २७ फरवरी को दुर्गापुरा रेलवे स्टेसन पर प्रातः ७ बजे पहुचना है।  तीर्थ यात्री अपने साथ परिचय पत्र , दो रंगीन पासपोर्ट साइज फोटो तथा दैनिक उपयोग की सामग्री तथा एक समय का भोजन साथ लेकर आवे।


अपने नाम की जानकारी इस लिंक को क्लिक करके जाने


http://www.devasthan.rajasthan.gov.in/JPR_TO_Tirupati_27_02_2015.pdf
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बीकानेर।  प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के क्षेत्रिय कार्यालय सादुलगंज से शिव संदेश यात्रा निकाली गई।  महाशिवरात्री के आध्यात्मिक संदेश गीतों व साहित्य के माध्यम से देने के उद्देश्य को लेकर सचेतन झांकी निकाली गई,  जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शिव के स्वर्णिम स्वर्ग, ज्योर्तिलिंगम आदि की झांकी सजी थी। क्षेत्रिय केन्द्र प्रभारी बीके कमल  ने बताया कि झांकी मेजर पूर्णसिंह सर्किल से अम्बेडकर सर्किल, रानीबाजार, गोगागेट, स्टेशन रोड से महात्मागांधी मार्ग  होते हुए पुनरू मेजर पूर्णसिंह सर्किल पहुंचकर समाप्त हुई।  बीके कमल ने बताया कि महाशिवरात्री के दिन मंगलवार  सुबह 10.30 बजे परमात्मा शक्ति द्वारा महापरिवर्तन आध्यात्मिक प्रवचन होगा। शिवध्वज भी फहराया जाएगा। शिव शक्ति  साधना पीठ में महाशिवरात्री पर मंगलवार को विशेष पूजा अर्चना का कार्यक्रम होगा। एडवोकेट मदनगोपाल व्यास ने  बताया कि चार प्रहर की पूजा विधि विधान से की जाएगी। भक्तों द्वारा शिवधुन का गान किया जाएगा। ब्राह्यण अंतराष्ट्रीय  संगठन राजस्थान प्रदेश एवं भारतीय संस्कृति एवं सनातन सार्वभौम महासभा के तत्वावधान में महाशिवरात्रि पर सामूहिक  पूजन रूद्राभिषेक एवं भक्ति संगीत एवं प्रवचन के कार्यक्रम ब्राह्यण अंतराष्ट्रीय संगठन राजस्थान प्रदेश एवं सनातन दर्पण  पत्रिका समूह द्वारा गठित भारतीय संस्कृति एवं सनातन सार्वभौम महासभा के तत्वावधान में सनातन समाज का  महाशिवरात्रि पर शिवलिंगों का सामूहिक पूजन, दुग्ध से रूद्राभिषेक एवं शिव दरबार पूजन का भव्य आयोजन 17 फरवरी   को बीकानेर के धनीनााथ गिरि मठ पंच मंदिर, कोटगेट में प्रात: 11 बजे से शुरू होगा । ब्राह्यण अंतराष्ट्रीय संगठन  राजस्थान प्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष पं. योगेन्द्र कुमार दाधीच ने बताया कि पूजन अनुष्ठान से सनातन धर्मावलम्बी अपने  परिवार सहित रूद्री पाठ के साथ शिवलिंग पर दुग्ध धारा से अभिषेक शिव दरबार का पूजन कर सकेंगे । निवार्ण  पीठाधीश्वर महामण्डलेश्वर राजगुरू स्वामी विशोकानंद जी भारती महाराज के सान्धिय में होने वाले इस सामूहिक पूजन  अनुष्ठान के अवसर पर भक्ति संगीत का भव्य कार्यक्रम भी होगा । पूजन अनुष्ठान में प्रत्येक परिवार के आगे एक-एक  शिवलिंग, पूजन सामग्री से सजी थाली, दुग्ध, पुष्पमाला, प्रसाद आदि सामग्री होगी, जिससे प्रत्येक परिवार विधि-विधान  से अपने हाथों से पूजन कर सकेगा । पूजन अनुष्ठान शास्त्री पंडित शास्त्री पं. अशोक शर्मा एवं यज्ञप्रसाद शर्मा के  आचार्चत्व में सम्पन्न होगा ।पंजीकरण:- पूजन अनुष्ठाान में शामिल होने के इच्छुक सनातन धर्मावलम्बी को व्यवस्था हेतु  अपने परिवारों का पंजीकरण करवाना होगा ताकि व्यवस्थित रूप से पूजन कार्यक्रम सम्पन्न हो सकें ।


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कोटपूतली। स्थानीय जांगिड़ ब्राह्मण सामुहिक विवाह आयोजन समिति की एक बैठक रामौतार जांगिड़ की अध्यक्षता मे आयोजित हुई जिसमे 20 फ रवरी फू लेरा दोयज को आयोजित होने वाले सामुहिक विवाह एवं सामाजिक सम्मेलन की तैयारियों को लेकर चर्चा की तथा जिम्मेदारियां सौंपी। महामंत्री कैप्टेन हेमराज जांगिड़ ने बताया कि उक्त कार्यक्रम मे जांगिड़ ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैलाशचंद शर्मा भी पधार रहे है। अध्यक्ष रामौतार जांगिड़ ने बताया कि अब तक 16 जोड़ो का रजिस्टे्रशन हो चुका है जिनके कागजात जिला कलक्टर जयपुर के पास जमा करवा दिए गए है। बैठक मे हनुमान सहाय जांगिड़, प्रहलाद सहाय जांगिड़, बसंतलाल, रूपाराम, रोहिताश, मामराज, जयनारायण जांगिड़ आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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बीकानेर । हाथों में पाटी,घोटा,लोटड़ी लिये बटुक गली मौहल्लों में दौड़ते और 'पकडो पकडोÓ नहीं नहंीं जावण दे जावण  दे.......की स्वर लहरियां। शुक्रवार को शहर के हर गली मौहल्ले में यह एक ही स्वर सुनाई दे रहा था। मौका था पुष्करणा  समाज के सामूहिक विवाह समारोह में यज्ञोपवित संस्कारों का। शहर में बड़ी संख्या में यज्ञोपवित संस्कार के आयोजन  हुए। बड़े बर्जुगों से भिक्षा मांगी तथा काशी के लिये बटुकों ने दौड़ लगाई। बटुकों को पकडऩे के लिये उनके परिजन उनके  पीछे दौड़े। इस बीच गली मौहल्लों व पाटों पर मौजूद लोगों ने 'पकडो पकडोÓ नहीं नहंीं जावण दे जावण की आवाजे  लगाकर बटुकों को काशी जाने की जिद का समर्थन किया। यज्ञोपवित संस्कारों की रस्म के बाद ननिहाल पक्ष की ओर से  भात भरने की परम्परा का निर्वहन किया गया। वही 8 फरवरी को सामूहिक सावे में होने वाले विवाह वाले घरों में भी वेद  मंत्रों की गूंज रही। सुबह से देर रात तक मांगलिक कार्यों में हर वर्ग का व्यक्ति भाग ले रहा है। सावे को लेकर  मायरा,खिरोडा,प्रसाद,चेहरे रंगने की परम्परा के बीच केसरियो लाडो जीवतों रे... के स्वरों के साथ नृत्य करते युवक  युवतियां से सावे की रौनक परवान पर है।
हाथधान हुए,छींकी आज
पुष्करणा सावे के दौरान जिन युवक-युवतियों का विवाह होने वाला है उनके हाथधान लेने के मांगलिक कार्यक्रम हुए।  मांगलिक गीतों के साथ परिवार की महिलाओं ने पीठी का लेप कर लखदख व तेल चढ़ाने की परम्परा निभाई और विवाह  करने वाले युवक युवतियों को केसरिया वस्त्र धारण करवाये। केसरिया वस्त्र धारण करने के बाद बनड़ा व बनड़ी ने बड़े  बर्जुगों का आशीर्वाद ले ननिहाल लड्डू चढ़ाने पहुंचे। सावे कार्यक्रम के अनुसार शनिवार को मातृका स्थापना व गणेश  परिक्रमा 'छींकीÓ निकाली जायेगी। जिसके अन्तर्गत बनड़ा व बनड़ी अपने ससुराल जायेगें और विधिवत पूजन के बाद  उनकी खोल भराई की जायेगी।
खिरोड़ी सामग्री का वितरण
रमक झमक संस्था की ओर से विवाह वाले दिन वधु के घर जाने वाले खिरोडे की सामग्री का वितरण शुक्रवार को बारह  गुवाड़ में किया गया। संस्था अध्यक्ष प्रहलाद ओझा ने बताया कि भाजपा के युवा नेता विजय मोहन जोशी के नेतृत्व में  वितरण का कार्य शुरू किया गया। इसके अलावा सबसे छोटे बटुक का सम्मान भी किया गया।
प्रत्येक बाराती को पिलायेगें राबडिय़ा
पुष्करणा सावे पर निकलने वाली गणेश परिक्रमाओं के दौरान बाहर गुवाड़ चौक में प्रगतिशील विचार मंच द्वारा दूध  राबडिय़े का आयोजन किया जायेगा। सचिव शंकर लाल पुरोहित ने बताया दो क्विंटल दूध के राबडिय़े का वितरण किया  जायेगा।
दूल्हे होंगे सम्मानित
आठ फरवरी को होने वाले सावे के दौरान मोहता चौक और बारह गुवाड़ के चौक में प्रथम पहुंचने वाले दूल्हों का सम्मान  किया जायेगा। रमक झमक संस्था और मेघराज भादाणी परिवार की ओर से दूल्हों का सम्मान किया जायेगा। इतना ही  नहंीं भादाणी परिवार विवाह के बाद दुल्हन के साथ पहले आने वाले नवदम्पति को शील्ड प्रदान कर सम्मानित करेगा।


जयनारायण बिस्सा 
बीकानेर 

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कलश यात्रा के साथ बख्ताबाबा आश्रम मे भागवत कथा शुरू


भीलवाड़ा 4 फरवरी। चित्रकूट धाम (उत्तरप्रदेश) के कर्मयोगी आनन्द महाराज ने कहा कि श्रीमद् भागवत ऐसा ग्रंथ है जिसमंे व्यक्ति का जन्म होने से लेकर उसके मरण तक किस प्रकार जिया जाए, इसका राज छिपा है। जो व्यक्ति श्रीमद् भागवत के सार को अपने जीवन में उतारकर उसका पालन करते हुए आगे बढ़ता है वह व्यक्ति मनुष्य जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य करता है।
तिलकनगर बख्ताबाबा रोड़ के समस्त क्षैत्रवासियों की और से बख्ताबाबा आश्रम में आयोजित 7 दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के शुभारम्भ पर भागवत महात्म्य प्रसंग का वर्णन करते हुए उपस्थित सैकड़ो श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए उन्होने कहा कि भागवत व्यक्ति को जीवन जीने की कला सिखाती है। साथ ही मोक्षप्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। जो व्यक्ति श्रीमद् भागवत के नियमांे के अनुसार जीवन जीता है उसका जीवन सुखमय व लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर होने वाला होता है।
कथा के शुभारम्भ से पूर्व बख्ताबाबा आश्रम 51 कलशों की भव्य कलश यात्रा निकाली गई जो क्षेत्र के विभिन्न मार्गों से होती हुई पूनः कथास्थल पहंुची जहां विधिविधानपूर्वक श्रीमद् भागवत जी को स्थापित किया गया। कलश यात्रा में पीतवस्त्र व चुनरी पहने महिलाओं के साथ-साथ श्वेत वस्त्र पहने श्रद्धालु भी बारी-बारी से श्रीमद् भागवत जी को सिर पर धारण करे हुए चल रहे थे। वहीं उनके पीछे कर्मयोगी आनन्द महाराज संगीतमय भजनों की धुन के बीच श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हुए चल रहे थे। शोभायात्रा में जगह-जगह श्रद्धालुओं ने पुष्पव्वर्षा कर शोभायात्रा को भव्य बनाया।
आयोजन समिति के ज्ञानमल खटीक एवं जी.पी. खटीक ने बताया कि कथा प्रतिदिन दोपहर 1 से सायं 5 बजे तक चलेगी। उन्होंने कथा में शामिल हो धर्मलाभ लेने की श्रद्धालुओं से अपील की है।


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बीकानेर। पुष्करणा सावे को लेकर शहर में रौनक परवान चढने लग गई है। गल्ली-मोहल्ले  मांगलिक गीतों से  गुंजायमान है। प्रवासियों के आने का सिलसिला शुक्रवार को भी जारी रहा। बड़ी संख्या में प्रवासी कोलकता, चौन्नई,  मुम्बई से बीकानेर पहुंच रहे हैं। शहर में कई मोहल्लों में यज्ञोपवित संस्कार आयोजित किया गया। वहीं मायरे की रस्म   निभाई गई। पुष्करणा समाज का सामूहिक सावा आठ फरवरी को होगा। इसकी तैयारियों में पूरा शहर जुट सा गया है।  सेवा संस्थाएं पूरी तरह से मुस्तैद हो गई है। कंट्रोल रेट पर खाद्य सामग्री का वितरण किया जा रहा है।  शुक्रवार को कई  स्थानों पर यज्ञोपवित संस्कार कार्यक्रम आयोजित हुए। ।  बटुकों के यज्ञोपवित संस्कार के दौरान  घर-घर में  धर्म की  मान्यता के अनुसार यज्ञोपवित धार्मिक अनुष्ठान, पूजन ,हवन हुए।  परम्परा के अनुसार काशी के लिए दौड़ भी लगाई।   हाथ में घोटा, पाटी, लोटडी लेकर भागते हुए बटुकों को पकडने के लिए उनके परिवारजनों ने भी दौड़ लगाई।  
बीरा रमक-झमक होय आयज्यों..........
यज्ञोपवित संस्कार  के दौरान शुक्रवार को शहर में मायरा भरने के भी आयोजन हुए। जिन बटुकों के यज्ञोपवित संस्कार  हुआ उनके ननिहाल से मायरा भरा गया। हर गली-मोहल्ले में मायरा के पारम्परिक गीत श्बीरा रमक-झमक होय  आयज्यों ्य की गूंज रही। ढोल-बाजा के साथ बटुकों के ननिहाल पक्ष के लोग मायरा भरने पहुंचे। वही शहर में शुक्रवार  को बडी संख्या में हुई शादियों के दौरान भी मायरा भरने की रस्म का निर्वहन हुआ। ं दिन में जहा मायरा व खिरोडा की  रस्में हुई,वही देर शाम से बारातों के निकलने का क्रम शुरू हुआ जो देर रात्रि तक चलता रहा।
शान बढाना सभी का दायित्व
पुष्करणा सावे को कैसे बनाएं और खूबसूरत विषय पर शुक्रवार को रमक-झमक संस्था के बैनर तले गोष्ठी का आयोजन  किया गया। इस अवसर पर डॉ.अजय जोशी ने कहा कि सावे की शान व मान को बढाने का दायित्व हम सभी का है।  सावे के दौरान ऐसा कोई भी कार्य न हो जो इसकी पौराणिक संस्कृति के विरूद्ध हो। संस्था के अध्यक्ष प्रहलाद ओझा भैंरू  के साथ ही रतन लाल, चन्द्र शेखर छंगाणी, राजेश रंगा, महादेव बिस्सा, कैलाश ओझा, किशन कोलाणी, निखिल देराश्री,  राजा  ओझा, आर. के. सूरदासाणी, आनन्द मस्ताना, राज कुमार व्यास आदि ने विचार रखे।
दावों की खुल रही है पोल
पुष्करणा सावे से पूर्व परकोटे के अन्दरूनी क्षेत्रों में सफाई, प्रकाश , पेच वर्क व आवारा पशुओं को हटाने के लिए निगम  प्रशासन की ओर से किए लम्बे चौड़े दावे किए थे।  मगर अब जबकि सावे में मात्र एक सप्ताह का ही समय शेष रह गया  है फिर भी सावा वाले क्षेत्रों में न तो उचित प्रकाश व्यवस्था नजर आ रही है न ही सफाई की व्यवस्था। सडको पर पडे गढ्ढें  ,हर चौक -चौराहो पर लड रहे आवारा पशु निगम प्रशासन की पोल खोल रहे है। सावा क्षेत्रों में मुख्य सडकों के साथ  -साथ गली-मोहल्लों में भी अंधेरा पसरा पडा है। अनेक स्थानों पर सडकों पर  फैल रहा कीचड, कचरे के ढेर सफाई  व्यवस्था की पोल खोल रहे है। निगम प्रशासन की इस अनदेखी से लोगो में रोष फैल रहा है। लोगों में इस बात को लेकर  नाराजगी है कि निगम व जिला प्रशासन ने सावे के अवसर पर लम्बे चौडे दावे किये थे जो अब खोखले साबित होते नजर  आ रहे है।
...अब खुली आंख
पुष्करणा सावा अब महज 10 दिन दूर है। इसके बाद भीतरी परकोटे में कई मोहल्लों में अभी भी विकास कार्यों की दरकार  है। तो कुछ मोहल्लों में अभी भी नालियों के दुरुस्त करने का कार्य चल रहा है। सड़कों की मरम्मत अभी भी कई मोहल्लों  में बाकी पड़ा है। साफ-सफाई का भी अभाव है। जगह जगह बिजली केबलें सड़क के बाहर पड़ी है। इसके कारण सड़क भी  क्षतिग्रस्त पड़ी है।
विवाह समारोह की रही धूम
हालांकि सामूहिक सावा आठ फरवरी को प्रस्तावित है लेकिन श्ुाक्रवार रात को भी विवाह समारोह की धूम रही। शाम
ढलने के साथ ही शहर में डीजे
और बैंड बाजों के साथ बाराते निकली।
शहर में विवाह समारोह को लेकर
खासी रौनक रही। बारातों का सिलसिला
देर रात तक चला। विवाह स्थलों पर
लोगों का जमावड़ा रहा। हर ओर मांगलिक गीतों की गूंज रही।
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    बीकानेर। पुष्टिकर उत्थान समिति की ओर से प्रकाशित बीकानेर के पुष्करणा समाज की परिचय निर्देशिका का  विमोचन एक फरवरी को दोपहर में पुष्करणा स्कूल में किया जायेगा। प्रेस वार्ता में समिति के अध्यक्ष उमेश कुमार आचार्य  व सुरेन्द्र कुमार व्यास ने बताया कि समारोह में पूर्व राज्यसभा सांसद श्रीगोपाल प्यास,विधायक डॉ गोपाल जोशी,पं  नथमल पुरोहित,पं जुगल किशोर ओझा,लाल बाबा,जर्नादन कल्ला,समाजसेवी राजेश चूरा व उपमहापौर अशोक आचार्य  बतौर अतिथि के रूप में शिरकत करेंगें। उन्होंने बताया कि 1200 पृष्ठों की इस निर्देशिका में बीकानेर के समस्त पुष्करणा  परिवारों के घर के मुखिया के फोटो सहित परिचय प्रकाशित किया गया है। इसके अलावा पुष्करणा समाज की जातियों  ,उपजातियों,गौत्र,समाज की परम्परा,इतिहास,बीकानेर की संस्कृति,सावे की जानकारी,संस्कारों,मेलों स्वतंत्रता सेनानियों  की वृहद जानकारी दी गई है। आचार्य ने बताया कि समारोह के दौरान समाज के वरिष्ठ जनों का सम्मान किया जायेगा।  उन्होंने बताया कि निर्देशिका को तैयार कराने में लगभग पांच वर्ष लगे है और इसे निरन्तर अपडेट किया जाता रहेगा।  इसके अतिरिक्त एक वेबसाइट के जरिये 2013 के बाद समाज के और लोगों की जुुडऩे का प्रयास किया जायेगा। इस मौके  पर ज्योतिप्रकाश रंगा,मनीष व्यास,अशोक बिस्सा,टीकमचंद हर्ष  आदि उपस्थित थें ।

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बीकानेर। बीकानेर प्रेस क्लब समिति,बीकानेर के सोमवार को हुए चुनाव में अध्यक्ष पद पर पत्रकार जयनारायण बिस्सा  निर्वाचित घोषित किए गए हैं। चुनाव अधिकारी एडवोकेट अजय कुमार पुरोहित ने बताया कि सूचना केन्द्र में हुए मतदान में  बिस्सा को 40 मत मिले,जबकि उनके प्रतिद्वंदी अनुराग हर्ष को 22 मत मिले। बिस्सा 18 वोट से विजयी घोषित किए गए।  पुरोहित ने बताया कि महासचिव पद पर पत्रकार अपर्णेश गोस्वामी को चुना गया। गोस्वामी को 46 मत,जबकि उनके  प्रतिद्वंदी रवि बिश्नोई को 16 वोट मिले। इसी प्रकार से कोषाध्यक्ष पद पर पत्रकार विक्रम जागरवाल विजयी घोषित किया  गया। जागरवाल को 50 मत मिले,जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी अरविन्द व्यास को 12 मत मिले। कुल 70 मतदाताओं  में से 63 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। तीनों ही पदों पर सीधा मुकाबला हुआ। चुनाव अधिकारी  पुरोहित ने विजयी प्रत्याशियों को प्रमाण पत्रा सौंपे। चुनाव प्रक्रिया में एडवोकेट योगेन्द्र पुरोहित और एडवोकेट बालू लाल  स्वामी ने सहयोग दिया।

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बीकानेर।  पुष्करणा समाज का सामूहिक ओलम््िपक विवाह समारोह 8 फरवरी को आयोजित होगा। इसके लिए शहरी  क्षेत्र में व्यापक तैयारियां की जा रही है। सरकारी दर पर राशन सामग्री उपलब्ध करवाने के लिए परशुराम सेवा समिति  का कार्यालय पुष्करणा स्टेडियम में खुल गया है। इसके अलावा अन्य संस्थाएं भी सावे की तैयारी में जुटी हैं। परशुराम  सेवा समिति के कार्यालय में वैवाहिक कार्यक्रम आयोजित होने वाले परिवार को राशन सामग्री के रूप में दो टीन तेल, एक  बोरी गेहूं, 50 किलो चीनी, एक कट्टा मैदा दिया जा रहा है। इसके अलावा शुक्रवार को बटुक यज्ञोपवित संस्कार का कार्य  पूर्ण करेंगे। यह कार्य 5 फरवरी को भी आयोजित होगा।

मिलेगी वधु पक्ष को राजकीय सहायता
सामूहिक विवाह में भाग लेने वाले वधु पक्ष को राजकीय सहायता के रूप में दस हजार रुपये की आर्थिक सहायता  मिलेगी। इसके लिए विवाहोपरान्त 15 फरवरी को स्टेडियम में विवाह पंजियन का कार्य किया जाएगा।

सेवा और भी देंगे
सामूहिक विवाह के लिए आयोजनकर्ता परिवार को कपिल जन कल्याण प्रन्यास ट्रस्ट की ओर से कपिल आश्रम परिसर में  जगह की निरूशुल्क व्यवस्था की जाएगी। इसके लिए कमेटी का गठन भी किया गया है। इसके अलावा रमक-झमक  संस्थान के प्रहलाद ओझा श्भैरव्य ने बताया कि दुल्हों व दुल्हनों को विवाह के लिए आवश्यक घोटे, पाटिया, खड़ाऊ, बटुआ  आदि का नि:शुल्क वितरण किया जा रहा है। हब्र्स ब्यूटी पार्लर की संचालिका रचना रंगा ने बताया कि सामूहिक सावे में  विवाह बंधन में बंधने वाली वधु का शृंगार नि:शुल्क किया जाएगा। इसके अलावा दुल्हे व बारातियों के साफा बांधने का  कार्य कृष्णकांत पुरोहित व उनकी टीम द्वारा किया जाएगा।





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देवली न्यूज- यहां  उपखण्ड के आवां कस्बे में पारस्परिक सद्भावना व सौहार्द्र का प्रतीक दडा (फु टबॉल ) खेल मंकर संक्रांति को खेला जाता है  । वही गोपाल भगवान का आंगन जहां करीब पांच हजार खिलाडी पसीने से लथपथ , गुत्थम - गुत्था होकर टूट पड़ते है  भारी भरकम  दडे पर । गोपाल भगवान को साक्षी मानते हुए कस्बे सहित एक दर्जन गांवों में अकाल ओर सुकाल का फ ैसला करने वाला दडा महोत्सव नववर्ष की शुरूआत के बाद मकर सक्रांती को प्रथम त्योहार के रूप में मनाया जाता है । हर साल की तरह गांव के गोपालजी भगवान के मंदिर चौक में आसपास के बारहपुरों के ग्रामीणों अपनी राजस्थानी पोशाकों में सज -धज कर इस रौचक व अद्भुत खेल को खेलने मकर संक्रांति के दिन सुबह दस बजे से ही आने लग जाएंगे । जब यह चौक इन रंग - बिरगें सजे देहाती ग्रामीणों व  नौजवानों से खचाखच भर जाएगा, तब 80 से 100 किलो वजनी टाट व रस्सी से बनी गेंद जिसे दडा कहते हैं,गोपाल चौक के बीचों - बीच रिसायती गढ में से निकाल कर डाल दी जाएगी ओर फि र शुरू हो जाएगा यह रोमांचक खेल । दर्शकदीद्र्या का रूप होगी मकानों की छतें बारहपुरा से आए इन ग्रामीणों को खेल में जोश दिलाने के लिए रंग बिरंगे कपडों में सजी महिलाएं भी गोपाल चौक के चारों  और मकानों की छतों पर बैठ जाएगी । ये महिलाएं खिलाडियों लगातार  का होसला बढाती रहती है।
दो दरवाजों को बनाई जाती है गोल पोस्ट: दडे को फ ुटबॉल की तरह गोल पोस्ट के ओर धकेलने के लिए खेल के निर्णय के लिए प्राकृतिक रूप से दो गोल पोस्ट भी तय किए हुए हैं एक और अखनिया दरवाजा है, दूसरी ओर दूनी दरवाजा । आवंा के चारों तरफ  पहाडी इलाकों में बसे बारह गांव इस तरह से बंटे है कि आंवा में आने  वाले छह गांव के ग्रामीणों को दूनी दरवाजे से आना पडता है ओर छह गांवों के ग्रामीणों का आखनिया दरवाजे से । बस यही खिलाडियों का बटंवारा है । दूनी दरवाजे की ओर से आने वाले ग्रामीण इस दडे को अखनिया दरवाजे की ओर धकेलते है, जबकि बाकी छह गांवों के लोग जोर लगाने में जुट जाते हैं ओर दडें को दूनी दरवाजे को ले जाने में लगे रहते हैं ।
इस प्रकार लगता हैं अकाल सुकाल का पता : लोगो का माना  है कि फ ुटबाल  आवां में खेले जा रहे दडे का सुधरा हुआ रूप है। दडा खेल देश की आजादी के पहले से चला आ रहा हे । इसकी हार - जीत से खुशहाली का पूर्वानुमान लगाया जाता है,इस खेल से यह मान्यता भी जुडी है कि यदि दडा अखनिया दरवाजे की ओर चला जाए तो समझो अकाल से क्षेत्र के लोगो को रूबरू होना पडेगा। यदि दडा दूनी दरवाजे की तरफ  चला जाए तो पो बारह यानी खेत लहलहांएगे ओर अमन चैन रहेगा ।


दडे का निर्माण इस प्रकार किया जाता हैं :-
यह खेल मकर संक्र ांति को ही खेला जाता है । दडा (फु टबाल)हर साल इसे खेलने के बाद गढ की बावडी में डाल देते है, जिसे मकर संक्र ांति के दो दिन पहले निकाला जाता है । टाट चढकर इसे फि र गूंथकर तैयार कर एक रात के लिए पानी में भिगोने के लिए बावडी में डाल दिया जाता है, ताकि दडा ओर वजनी हो जाए । मकर संक्राति के दिन आठ -दस आदमी इसे उठाकर जब गोपाल चौक में लाते है । इस दडे का निर्माण भी राव राजा राजेन्द्र सिंह के छोटे भाई जयेन्द्र सिंह द्वारा करवाया जाता है । तथा उनियारा रिसायत ने आज भी इस खेल को जिंदा रखा है । उनियारा रिसायत के राव राजा स्व.सरदार सिंह अपनी सेना मेंनौजवानों की भर्ती करने के लिए परीक्षा के रूप में यह खेल आयोजित करते थें । वे देख लेते थे कि कौनसा  रणंबाकुरा हो सकता है, जिसे सेना में भर्ती किया जाए । अब न रिसायतें बची हे ओर न ही उनकी फ ौज ,फि र भी राज परिवार द्वारा जारी यह लोक कला और  संस्कृ ति का प्रतीक यह खेल अब भी जिंदा है ।

दोनो और से विना रैफि र के अनुशासन से खेला जाता हैं यह मैंच : अनगनित खिलाडियों व बिना रैफ री के रिसायतकालीन समय से चला आ रहा यह खेले राग द्वैष व विवाद को त्यागकर खेला जाता है । तीन घण्टे केइस खेल में रामपुरा , बालापुरा ,संग्रामपुरा, कल्याणपुरा, सीतापुरा ,हनुमानपुरा, कंवरपुरा,बिशनपुरा सहित एक दर्जन गांवो केलोग शामिल होते हे। जो स्वत: ही दोनो दरवाजों में दो दलों में बंट जाते है । गोपाल भगवान केमंदिर के सामने गढ के चोक में दोपहर 12 बजे पंचो केसानिध्य में दडा लाया जाता है  ओर दूनी दरवाजे व अखनिया दरवाजे से आने वाले ग्रामीण खेलने को आतुर हो जाते हैं । दडा मैदान में लातेही खिलाडी दोड पडते है ओर बिना रैफ री के खेल शुरू हो जाता है ।

सभी वर्ग के दर्शक बढाते हैं जोश-दडा खेल के दौरान गोपाल चोक के चारों ओर मकानों , स्कूल ,गढ व मंदिरों की दीवारें दर्शको से अट जाती है । पुरूषों के साथ साथ महिलाएं,बच्चो व बुर्जग भी छतों पर चढकर दडे के अखनिया दरवाजे या दूनी दरवाजे की तरफ जाने पर हताश खिलाडियों का जोश बढाती है । खेल क ेदोरान कई पुरूषों के कपडे फ ट जाते है ।

गौरव चतुर्वेदी 

संवाददाता टोंक 


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युवा दिवस पर किया पौधारोपण
जयपुर- श्री कल्पतरु संस्थान की और से चलाये जा रहे 'ग्रीन इंडिया - क्लीन इंडिया' अभियान से आज गायत्री परिवार के संयोजक डॉ. प्रणव पंड्या भी जुड़ गए है, स्वामी विवेकानन्द जयंती 'युवा दिवास' के अवसर पर संस्थान की और से विवेकानन्द पार्क में पौधारोपण किया गया जिसका शुभारम्भ डॉ. प्रणव पंड्या नें अशोक का पौधा लगाकर किया. संस्थान अध्यक्ष विष्णु''लाम्बा'' नें बताया की मकर संक्रांति पर चाइनीज़ मांझे से घायल होनें वाले पक्षियों को बचानें के लिये तीन दिवसीय निशुल्क पक्षी चिकित्सा शिविर की जानकारी डॉ.पंडया को दी गई, जिसे सराहनीय बताते हुए हुए उन्होंने अभियान की सफलता के लिये शुभकामनाएं और हर संभव सहयोग का आश्वाशन दिया.
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डॉ. अतुल कुमार

छुट्टी बिताने और मौज मस्ती करने का मौका होना चाहिए। हिन्दुस्तानी आदतन ही फौरन तैयार होतें हैं। त्यौहार मनाने का कोई कारण होना चाहिए सारें लोगों ने फौरन इकट्ठा होकर खुशियां मनाने में शामिल होने में देर नहीं लगानी। पंरपराओं और त्योहारों कोमनाने में हमारा कोई सानी नहीं। यह शायद इसे महसूस कर सकते हैं। चाहे हमारी गुलामी और शहीदों के हत्यारे दुश्मन देश की ही खुशी का त्यौहार क्यों ना हो।
ब्रितानी साल के मनाने को लेकर प्रख्यात गाँधीवादी और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री मोरारजी देसाई को पहली जनवरी पर नववर्ष की बधाई दी तो उन्होंने उत्तर दिया था- किस बात की बधाई? मेरे देश और देश के सम्मान और इतिहास का तो इस दिन तिथि से कोई संबंध नहीं। यही हम लोगों को भी समझना और हर हिन्दुस्तानी को समझाना होगा क्या एक जनवरी के साथ आरम्भ होने वाले साल में कोई ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जगे।
उनकी इस बात में बहुत गहरा मर्म था। खून में गुलामी के कीटाणुओं को डाल चुकी गोरोें ने की सत्ता अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए हमारी पहचान और संस्कृति और धर्म को क्रूर सोच के साथ शनैः शनैः मिटा देने की योजनाबद्ध तैयारी में ही ऐसे त्योहार पर छुट्टी का आरंभ किया जाना था। हमे अपनी जिम्मेदारी और हमारे कर्म व धर्म को स्वयं तय करना है। रविवार की सरकारी छुट्टी भी चर्च के लिए ही थी। अब तो यह वक्त है कि हम अपनी जड़ों से जुड़ने के लिए साप्ताहिक अवकाश भी पर्व और तिथियों पर धोषित करें और हमें उस सप्ताह के रविवार की छुट्टी को खत्म कर देना चाहिए। भारतीय नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हमारे जनपद में नववर्ष के नाते हजारों  सालों से मनाया रहा है। हम परस्पर उसी दिन एक दूसरे को शुभकामनाये दें।
भारतीय नववर्ष का अपना ही ऐतिहासिक महत्व है। यही दिन सृष्टि रचना का प्रथम दिन है। एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 111 वर्ष पूर्व ब्रह्मावर्त में इसी दिन के सूर्याेदय से भगवान ब्रह्माजी ने जगत की रचना प्रारंभ की। कोई नहीं मान भी सकता है पर यह आस्था एक गहरे शोध का बिंदु अवश्य है कि पंच महाभूतों के अनुपातिक समन्वय से निर्मित इस शरीर में जीवन शक्ति के निरूपित होने के लिए और उस आत्म बल के निस्तारण में क्यों नक्षत्रों की स्थिति प्रभावी होती है।
शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन। युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन यानि कि लगभग बावन सौ वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ। संवत का पहला दिन उसी राजा के नाम पर होता था जिसके राज्य में न कोई चोर हो, न अपराधी हो, और न ही कोई भिखारी हो। साथ ही राजा चक्रवर्ती सम्राट भी हो। सम्राट विक्रमादित्य ने 2071 वर्ष पहले इसी दिन राज्य स्थापित किया था। और तभी से उज्जैन के पराक्रमी सम्राट के नाम विक्रमी संवत् से नया पंचाग आरम्भ हुआ। शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस भी इसी दिवस से माना गया। विक्रमादित्य की भांति शालिनवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व ही है कि नये कार्य को प्रारंभ करने के लिये इसे शुभ मुहूर्त मानते हैं। वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। आइये! विदेशी को फैंक स्वदेशी अपनाऐं और गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानि विक्रमी संवत् को ही मनायें तथा इसका अधिक से अधिक प्रचार करें।
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‘‘ग्रामे-ग्रामे नगरे-नगरे रचयेम संस्कृत भवनम्’’


अजमेर । जयतु संस्कृत, जयतु भारतम् के उद्घोष के साथ सम्पूर्ण समाज में संस्कृत को जल-जन की वाणी बनाने के लिए कटिबद्धता प्रकट करते हुए एक दिवसीय ‘‘संस्कृत जनपद सम्मेलन’’ का आयोजन संस्कृत भारती के तत्वावधान में हुआ। संस्कृत जनपद सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि माननीय वासुदेव देवनानी, शिक्षा मंत्री, राजस्थान एवं अध्यक्ष कैलाश सौढ़ानी, म.द.स. वि.वि. अजमेर रहें। साथ ही हरिशेवा धाम, भीलवाड़ा के श्री हंसराम जी महाराज एवं ईश्वर मनोहर उदासीन आश्रम अजयनगर के महन्त श्री स्वरूपदास जी महाराज के आशीर्वचन प्राप्त हुआ। उद्घाटन सत्र में संस्कृत वस्तु प्रदर्शनी, राजस्थान गौरव प्रदर्शनी एवं संवादशाला का उद्घाटन हुआ। मुख्य अतिथि श्री देवनानी ने संस्कृत को जन भाषा बनाने के लिए अपनी कटिबद्धता दिखाई। वहीं अध्यक्ष श्री सौदानी ने संस्कृत भाषा के महत्त्व पर प्रकाश डाला। इस सत्र में पत्राचार द्वारा संस्कृत पाठयक्रम का शुभारम्भ माननीय मुख्य अतिथि द्वारा किया गया। इस अवसर पर शिक्षा मंत्री श्री देवनानी जी, म.द.स.वि.वि. अजमेर के कुलपति श्री सोढ़ानी जी एवं श्री हंसाराम जी महाराज ने पाठयक्रम में प्रवेश लिया। मध्याहन सत्र में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसके अध्यक्ष प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. बद्रीप्रसाद पंचौली रहें साथ ही नृसिंह मंदिर, होलीदड़ा, अजमेर के महन्त श्री श्याम सुन्दर शरण देवाचार्य ने मुख्य अतिथि की भूमिका निभाई। विचार गोष्ठी सत्र में संस्कृत सभी के लिए विषय पर श्रोताओं से विचार विमर्श हुआ। शिक्षक वर्ग एवं विभिन्न विद्यालयों से आए छात्र-छात्राओं ने संस्कृत के प्रचार-प्रसार के निमित अपने विचार एवं सुझाव प्रदान किए।
अपराहन सत्र में संस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता डॉ. बृजेश माथुर से.नि. अधिक्षक ज.ला.ने. चिकित्सालय अजमेर एवं आशीर्वचन श्री पाठक जी महाराज चित्रकूट धाम पुष्कर ने प्रदान किए। इसके अन्तर्गत विभिन्न विद्यालयों (डेमोस्ट्रेशन स्कूल, मयूर स्कूल, संस्कृति द स्कूल आदि) तथा सप्तंक तानसेन संगीत महाविद्यालय आदि संस्थाओं द्वारा अपनी संस्कृत नाट्य, संस्कृत गीत, श्लोक पाठ आदि का प्रस्तुतिकरण किया गया।
अन्तिम सत्र समापन समारोह में मुख्य अतिथि श्री नन्द कुमार जी राष्ट्रीय महासचिव संस्कृत भारती एवं अध्यक्ष पुरूषोत्तम परांजये, क्षेत्रीय संघचालक राजस्थान राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ रहे। विशिष्ट अतिथि श्री रासासिंह राव पूर्व सांसद अजमेर रहे।
कार्यक्रम में कृष्ण कुमार गौड़ (अध्यक्ष संस्कृत भारती) हुलाक चन्द जी (क्षेत्रीय संघटन मंत्री, संस्कृत भारती), श्री देवेन्द्र पण्ड्या (प्रान्त संगठन मंत्री, चित्तौड़ प्रान्त), श्री राजेन्द्र शर्मा (प्रान्त मंत्री चित्तौड़ प्रान्त), श्री विष्णुशरण शर्मा आदि उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त संस्कृत विद्वान श्री सत्यनारायण शास्त्री का सम्मान किया गया।


 कैलाश मानसरोवर यात्रा करना  हर हिन्दू अपना सौभाग्य हैं  . कैलाश मानसरोवर  को शिव-पार्वती का घर माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान भोले का धाम है। यही वह पावन जगह है, जहाँ शिव-शंभू विराजते हैं। पुराणों के अनुसार यहाँ शिवजी का स्थायी निवास होने के कारण इस स्थान को 12 ज्येतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कैलाश बर्फ़ से आच्छादित 22,028 फुट ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर को 'कैलाश मानसरोवर तीर्थ' कहते है और इस प्रदेश को मानस खंड कहते हैं। हर साल कैलाश-मानसरोवर की यात्रा करने, शिव-शंभू की आराधना करने, हज़ारों साधु-संत, श्रद्धालु, दार्शनिक यहाँ एकत्रित होते हैं, जिससे इस स्थान की पवित्रता और महत्ता काफ़ी बढ़ जाती है। कैलाश-मानसरोवर उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का समागम होता है, जो ‘ॐ’ की प्रतिध्वनि करता है। इस पावन स्थल को 'भारतीय दर्शन के हृदय' की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक प्रतिबिंबित होती है।


मानसरोवर झील

मानसरोवर झील तिब्बत में स्थित एक झील है। यह झील लगभग 320 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में रक्षातल झील है। पुराणों के अनुसार विश्व में सर्वाधिक समुद्रतल से 17 हज़ार फुट की उंचाई पर स्थित 120 किलोमीटर की परिधि तथा 300 फुट गहरे मीठे पानी की मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से भगवान शिव के प्रसन्न होने पर हुई थी। ऐसी अद्भुत प्राकृतिक झील इतनी ऊंचाई पर किसी भी देश में नहीं है। पुराणों के अनुसार शंकर भगवान द्वारा प्रकट किये गये जल के वेग से जो झील बनी, कालांतर में उसी का नाम 'मानसरोवर' हुआ।
राक्षस ताल

राक्षस ताल लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, 84 किलोमीटर परिधि तथा 150 फुट गहरे में फैला है। प्रचलित है कि राक्षसों के राजा रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद भी कहते हैं। एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों को जोडती है।

कैलास पर रावण की शिव स्तुति
शिव महापुराण के अनुसार एक बार लंकापति रावण ने कई वर्षों तक लगातार शिव स्तुति की, लेकिन उसकी स्तुति का कोई प्रभाव भगवान शंकर की समाधि पर नहीं पड़ा, तब उसने कैलास पर्वत के नीचे घुसकर उसे हिलाने की कोशिश की ताकि भगवान शंकर उठकर उसकी इच्छानुसार वरदान प्रदान करें। उसकी इस इच्छा को जानकर शिव ने उसे पहले ही कैलास के नीचे दबा दिया, जिससे वह बाहर न निकल सके। पर्वत के नीचे दब जाने के बाद रावण शिव का प्यारा तांडव नृत्य करते हुए एक स्तोत्र रचकर गाने लगा, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे इच्छानुसार वरदान दिया।

कैलाश मानसरोवर यात्रा

कैलाश पर्वत - परिचय :- कैलाश पर्वत, जिसकी उँचाई 6740 मीटर है, हिमलयी अवरोध के उत्तर में स्थित है, जो पूर्णरूप से तिब्बत में है| यह अदभुत सोन्दर्य वाला पर्वत है जिसमें 4 फलक्‌ / आमुख हैं|यह चार महान धर्मों : तिब्बती बोद्धवाद, हिंदुवाद, जैन धर्म एवम बौद्ध पूर्ब् जीववादी धर्म : बॉन्पो के लिए अध्यात्मिक केंद्र है| तिब्बतीयों के लिए यह खांग रिम्पोचे (बर्फ का बहमुल्य रत्न) के रूप में जाना जाता है और वे इसे विश्‍व की नाभि के रूप में देखते हें| यह कहा जाता है कि इस पर्वत से एक धारा नज़दीक़ी झील में गिरती है और यहाँ से नदियाँ चार मुख्य दिशाओं में प्रभहित होती है|उत्त्तर की और सिंह मुख नदी , पूर्ब् की और अश्व मुख नदी, दक्षिण की और मयूर मुख नदी तथा पस्चिम की ओर गज़ मुख नदी |यह काफ़ी आश्‍चर्या की बात है कि चार प्रमुख नदियाँ - सिंध, यर्लांग सोँपो(ब्रह्मपुत्र), करनाली एवम सतलुज का उद्‍गम वास्तव में कैलाश पर्वत के पास से होता है| तिब्बत वासी यह विश्‍वास करते हें की यह एक ख़ूँख़ार दिखने वाले तांत्रिक देवता डेमचोक का निवास है जो यहाँ अपने जीवन साथी (पत्नी) डोर्जो फाम्मो के साथ रहता है | तिब्बत वासियों के लिए भी यह एक बहुत विशेष स्थान है जहाँ पर उनके कवि संत मिलारेपा ने गुफा में ध्यान लगाते हुए कई वर्ष बिताए थे | हिंदुओं के लिए कैलाश पर्वत , मेरु पर्वत की सांसारिक अभिव्यक्ति है की भ्राह्मांड का उनका अध्यात्मिक केन्द्र है , जिसका चित्रण 84,000 मील उँचें विलक्षण "विश्व स्तंभ" के रूप में किया गया है, जिसके चारों और अन्य सभी परिक्रमा करते हेँ , जिसकी जड़ें पाताल में हेँ एवं जिसकी चोटी स्वर्ग का चुंबन कर रही है | शिखर पर उनके परम श्रद्ढेया श्र्द्धेय भगवान शिव एवम उनकी धर्मपत्नी पार्वती निवास करती हैं|जैन धर्म , जो कि एक भारतीय धार्मिक समूह है, के अनुयायियों के लिए कैलाश वह स्थान है जहाँ पर उनके प्रथम संस्थापक ने जैन धर्म , जो कि एक भारतीय धार्मिक समूह है, के अनुयायियों के लिए कैलाश वह स्थान है जहाँ पर उनके प्रथम संस्थापक ने आत्मज्ञान प्राप्त किया था|

बहुत प्राचीन बौद्ध के पूर्वजों के लिए यह वह स्थान है जहाँ पर इसके संस्थापक शानरब, ऐसा कहा जाता है, स्वर्ग से अवतरित हुए थे| पहले यह प्राचीन बौद्ध साम्राज्य झांग चुंग का आध्यात्मिक केन्द्र था जिसमें एक बार संपूर्ण पाश्चिमी तिब्बत शामिल था| बौद्ध धर्म के अनुयायी अन्य धर्म के विपरीत दा क्षणवावत विरुद्ध दिशा में पर्वत की परिक्रमा करते हेँ| विगत सर्दीयो में,तीर्थयात्रिओं ने आत्मज्ञान प्राप्त करने या अपने पाप धोने के लिए,विशाल दूरीयों,विशेषकर उग्र मौसा और डाकुओं के हमलों का हिम्मत से सामना करते हुए असीम दूरीयों की लगातार यात्रा की |

वस्त्र और उपस्कर :-

कैलाश-मानसरोवर 16,000 से 19,500 फीट की उँचाई पर स्तिथ है| भारतीय तीर्थयात्रा का मौसम मानसून(जून- सेप्टेंबर) का है| तथापि, उच्चतर पहाड़ों पर कम बरसात होती है| उँचाई पर मौसम परिवर्तनशील और जोखिम-भरा होता है| दिन के दौरान सूरज गरम होता है| और त्त्वचा को नुकसान हो सकता है| उनी कपड़े और विंड चीटर्स ठंडी हवाओं का सामना करने के लिए आवश्यक है| वस्त्र हल्के , विंड-प्रूफ,वॉटर-रिपेलेंट और गरम होने चाईए| प्रत्येक यात्री को निम्नलिखित समान साथ ले जाने का परामर्श किया जाता है| विंड -प्रूफ जॅकेट -1. स्वेटर-2 पूरी बाजू, मंकी कैप-1,उनी और चमडे के दस्ताने -1 जोड़ा प्रत्येक ,उनी /कॉटन लॉंग जोन्स-2 जोड़े, उनी जुराब-4 जोड़े,कॉटन की जुराबें -4 जोड़े, जीन्स/पेंट-3,शॉट्स-2,शर्ट/टी शर्ट-6,चेन सहित अच्छी किस्म के धूप के चश्मे-1,हंटिंग /मार्चीग जुटे-2 जोड़े, धूप से बचने के लिए स्ट्रॉ हॅट-1,पानी की बोतल-1, दो अतिरिक्त सेट सेल और बल्ब के साथ टॉर्च लाइट-1,बड़ा रेन कोट -1,कॅमरा /धनराशि/ दवाइयों / कागजात के लिए बेल्ट पाउच-1,सामान के वॉटर प्रूफिंग के लिए बड़ी प्लास्टिक शीट-1,प्लेट /मग/ चम्मच-1 सेट, टायलेट पेपर,सन बर्न से बचाव के लिए सन क्रीम लोशन-1,मोमबत्ती, माचिस की डिब्बी/लाइटर बहुउद्देश्या चाकू-1, रबर के स्लीपर्स-1, जिप के साथ कॅनवस बॅग (सूटकेस की अनुमति नहीं है), वॉकिंग स्टिक, एक बेडशीट और तकिया का कवर व्यक्तिगत स्वचछता के लिए (मॅट्रेस,क्विल्ट /स्लीपिंग बॅग सभी कॅंप में उपलब्ध कारावाए करवाए जाते हेँ ), कॅमरा| प्रत्येक यात्री निजी प्रयोग हेतु खाद्य सामग्री ले जा सकता है: कुमाओं मंडल विकास निगम नाश्ता ; दोपहर तथा रात्रि का भोजन, और दिन में दो बार चाय की आपूर्ति करता है| (चायनीज साइड के लिए सूची बाद में प्रस्तुत की जाती है) |तथापि, प्रत्येक तीर्थयात्री कुछ सामग्री ले जा सकता है|निम्नलिखित की अनुशंसा की गयी है: बिस्कुट मीठा /नमकीन, सूखे फल, लेमन ड्रॉप ,चॉकलेट , टॉफी, सूप पाउडर, चीज़ क्यूब , च्छेउइंगम चूयिंगगम, तत्काल पेय (इंस्टेंट ड्रिंक), एलेकट्राल / ग्लूकोस | परिक्रमा के दौरान प्रयोग हेतु सामान्य सामग्री( अथार्त चाइनईज़ साइड से यात्रा करने पर): चाइनईज़ साइड से भोजन केवल तकलाकोट में ठहरने के दौरान उपलब्‍ध करवाया जाता है|अत: 9 दिनों के लिए चाइनीस साइड में प्रयोग करने हेतु खाद्य सामग्री अपने साथ ले जायें| वे अपनी सुविधा के लिए दिल्ली से ख़रीदकर साथ ले जाएँ|तीर्थ यात्रिओं का प्रत्येक समूह संयुक्त रूप से खरीदारी कर सकता है|सामग्री या तो पहले से पकी अंशत:, पहले से पकी हुई या पकाने में आसानी होनी चाईए | जहाँ तक संभव हो भोजन तरल रूप में लिया जाए| उच्च तुंगता पर खाना पकाने में अधिक समय लगता है| अनुशंसा की गई सामग्री हैं: आटा, चावल,दाल,सोयाबीन बड़ी,न्यूडल्स , सूप पॅकेट , पहले से पकी हुई सूजी,उपमा पॅकेट, पहले से पकी हुई सब्जी एवम दाल के डिब्बे,सलाद,मसाले, दूध पाउडर / कनडेन्स मिल्क, चीनी, कॉर्न फ्लेक्स /ज़ई /दलिया,क़ॉफ़ी /बोर्नविटा,सूजी या हलवा बनाने के लिए पहले से भूना हुआ रवा,घी,हवन व पूजा हेतु पूजा सामग्री |

औषधियाँ

परिक्रमा के दौरान प्रयोग हेतु सामान्य सामग्री(अर्थात चाइनईज़ साइड से यात्रा करने पर): चाइनईज़ साइड से भोजन केवल तकलाकोट में ठहरने के दौरान उपलब्‍ध करवाया जाता है|अत: 9 दिनों के लिए चाइनीस साइड में प्रयोग करने हेतु खाद्य सामग्री अपने साथ ले जायें| वे अपनी सुविधा के लिए दिल्ली से ख़रीदकर साथ ले जाएँ|तीर्थ यात्रिओं का प्रत्येक समूह संयुक्त रूप से ख़रीदकर साथ ले जाएँ|तीर्थयात्रिओं का प्रत्येक समूह संयुक्त रूप से खरीदारी कर सकता है| सामग्री या तो पहले से पकी हुई/ अंशत: , पहले से पकी हुई या पकाने में आसान होनी चाईए| जहाँ तक संभव हो भोजन तरल रूप में लिया जाए| उच्च तुंगता पर खाना पकाने में अधिक समय लगता है| अनुशंसा की गई सामग्री हैं: आटा,चावल,दाल,सोयाबीन बड़ी,नूडल्स , सूप पॅकेट, पहले से पकी हुई सूजी, उपमा पॅकेट, पहले से पकी हुई सब्जी एवम दाल के डिब्बे, सलाद , मसाले , दूध पाउडर /कॉंडेन्स मिल्क, चीनी, कॉर्न फ्लेक्स / ज़ई /दलिया, क़ॉफ़ी /बौर्नवीटा,सूजी या हलवा बनाने के लिए पहले से भुना हुआ रवा,घी,हवन व पूजा हेतु पूजा सामग्री|

कैमरा


जो एक कैमरा ले जाना चाहतें हैं वे ऐसा कर सकते हेँ|एक कागज़ पर यात्री का नाम और बॅच नंबर, कैमरा / वीडियो कैमरा के मेक और सीरियल नंबर ब्योरे के साथ टाइप होना चाईए और विदेश मंत्रालय के प्राधिकारियों को सोपा जाए| कैमरा को चीन के भीतर ले जाया जा सकता है या कोई विशेष अनुमति आवश्यक नहीं है| चुंकि उच्चतर तुंगताओं पर साव की गति तीव्रतर है, अत: अतिरिक्त बॅटरीया साथ ले जानी चाईए | धारचूला तक, सीमित अवधि के लिए , बॅटरी रीचार्ज करने के लिए पॉवर सुप्पलाई है, जो तकलाकोट पर भी उपलब्ध है| कैलाश मानसरोवर यात्रा के संचालन के दौरान भातिसी पोलिस की ज़िम्मेदारी 1:- तीर्थयात्रिओं का विस्त्तत चितिक्सा जाँच तीर्थयात्रा प्रारम्भ होने से पहले भातिसी पोलिस के बेस अस्पताल नई दिल्ली में किया जाता है | 2:- गुँजी से तीर्थयात्रिओं को सुरक्षा प्रदान करवाना | 3:- तीर्थयात्रिओं की उँचाई की दृष्‍टि को मध्यनज़र रखते हूए भातिसी पोलिस के चिकित्सा अधिकारिओ का एक दल गुँजी में चितिक्सा जाँच करता है| 4:- गुँजी से लिपुलेख पास एवम वापसी में लिपुलेख से गुँजी तक सुरक्षा , चिकित्सा एवम संचार की व्यवस्था उपलब्ध करवाना | 5:- इस तीर्थ यात्रा के साथ जुड़ी अगेन्सियों के साथ समन् 6:-प्राकृतिक एवम किसी भी आपदा की स्तिथि को निबटने के लिए हमेशा तैयार रहना | वय एवम मेल मिलाप करना|


अगली सदी के आगे की इक अलबेली बात है। अनजाने अतीत के अनुसंधन में अनवरत रत अन्वेषी ने आज के आदम से अनछुए गुजरे कल की अनूठी अनपढ़ी इतिगाथा को अमला सह खोजी या खो दी जब खोदी ममी खोजी ने, यह तो वो ही जाने। हाँ! पर, तलातल में बंद बिलों की तह से निकल चहूँ दिक चले अंध रक्तचूषक पथ के सब सजीव सफाचट करते चले। वनराज, गजराज, रेतराज, नागराज, सारे सरताज को बने यमराज का ग्रास।  बेरोक कहर मीलों बरपा, विश्व के बीचोंबीच बरसों से बसे बहुत बड़े बीहड़ के बगल में से बहती बलखाती के बेढ़ब वलनी पर बंधे बांध के बाजू में बेमिसाल बहादुर बॉ, बहु, बेटी, बड़े, बूढ़े, बच्चे से बसे बमुश्किल बीस बीघे के बसेरे पर पहुँचे। सदा सुबह सबेरे सारे समुह में श्रमीवृंद वन जा संध्यावदन तक खाद्य संचय हेतु कंदमूल संभरण कर आनते। दर दहलीज की दरदारी में देवियां दुधारू संग दिवारात जुटी ऊती रहती। नासमझ नटखट निर्भय, निकास लगे में निशामुख तक नियमित खेलते। पर, इसी जीवन के गुजरते इन पल में यकायक पड़ी मौत की छाया पर निडर नन्हों की नजर! पर, न डर तुरंत धावा कर फेंका धर पूंछ घूूमा कर धरा पर पनघट पार। दंतहीन कर पिजरे में धर ले चले घर ताकि मौसी खाये घूस मनभर, पेटभर, बगैर डकार ले हजम कर जाए जबर। यह देख, सकते में आ, मांऐं अकुलाई। मुस्कराते चपल पर गुस्साई। सारे सुत समवेत सुहासित बोले-तू तो नित निशा निद्रा पूर्व हमको वीरसू रासो सुनाती- शावक संग खेेले लला, बाल बासंरीया विषधर कालिये पर करे ता ता थैय्या। हम मूस से भी भय खाये भला, क्यों जननी जरा जतला? भींच अंक में नादानों को नम नयनों में मंद मुस्काते ममता मोहक सुर में मन नहीं मन में बोल पड़ी, मां के दूध की शान बढ़ाई। लघु अंतराल में जरा दक्खिन में हरे भरे ऊँचे घन से घिरे टापा जंगल के टोपीबाज दोपायों ने वैश्विक अहं ले शक्तिमद में मौजां के लिए विशाल क्रीड़ालय बनाने अतिक्रमण करा। गलीज गोरे घुसपैठिये पर, क्रुद्ध हुआ कि रूष्ट हुआ! याकि पुश्तैनी जमीं पर गदें कदम के कदन से भविष्य के भविष्य पे किंचित हुआ वो चिंतित! जो हो पर, जरूर जानता वो इतना निश्चित ही प्रकृति संग निश्ंिचत रहना, संतति की रक्षा करना, पूर्वजों की अनमोल घरोहर संजोये रखना। जान चाहे देनी पड़े या चाहे जान लेनी पड़े। बली सिहों ने तुरंत चढ़ाई की। दो पहर में गोरों को सफा कर काली करतूतों की सजा दी। लाल हो गरजने वालों के लब तब खुदगर्जाें के गंदा पानीमिले लाल से भीगे। हाः! र्दुःभाग्य! पशु प्रकृति, नर संहार कर नर खादक भये, सो लगी लत जो खूँ की तो बू ले दे हुंकार दिशा ली इसी गांव की। दिन दहाड़े सुन दहाड़े वामा सारी बांध सारी ले कटारी पहुँची ग्राम किनारी। पलक झपक लपक पिल्ले समान कान उमेठ दो चार के कण्ठ भींच झापड़ जडे़ तो सवा छः फिट के चौपाये कठपुतली से पैर लटकाये जमीं पर पड़े मिले। झट दुम धर चटियल पर पटक चार-छः के रेत गला चीर अंतड़ी बाघम्बर खींचें ओढ़ने बिछाने को। बचे जो पे ज्यों धरे दो हाथ, तो शेरे दिल भग्न मेरूदण्ड के दंतहीन श्रीहीन हो के रंेगते नानी-मौसी याद करते म्याँऊते जमीं पर धरे पाये। घसीट लायी मर्दानी बाघन के बांधन को बाग बगीचे की बाढ़ माहे, ताकि लुकछिप के रात-रात भर चरते खरहे, नीलगाय, बारहसिंघ को डराडरा के रखें फसलें सुरक्षित। दिन ढले मर्द मिले। महिलाओं के दमखम पर कौतुक कर इतराये। नयन नचाती नारी सारी गुर्रा दी। अब चाहे आये गोरी भी तो जौहर हम नहीं करती, जब तुमसे प्रेम करती मन से प्रभु भक्ति करती फिर जानवरों से भी न निपट सकतीं। खुद ही हुआ सीना चौड़ा तब बाजु भी फड़के। आग जला खाद्य सेंक नीहारीका तले पूरी ठंडी रात में नाच-गा ठोल-बजा जीत का जश्न मना। प्रकृति मां की अनूठी प्रकृति।। करोड़ों बरस पहले के भूनृप के डिम्ब को अक्षत सेती ने जाने क्या विचारा। यकायक अनुकूल परिवेश प्रदान कर एक नमूना जना। जानव ने जिस अंचल में धरा कदम धरा के आंचल का जीवन करा अचल। आतंक का हमनाम बन करउत्तरजीव ने आग ऊगल लोमड़, भालू सब गुम करा दिए। उल्कापिण्ड के मानिंद भूतल पर गिराये ऊँचे उड़ते बाज, गिद्ध समेत पखेरू सारे को झुलसा प्राण हर लिए। आंसमा दिक् उठती हनुमान की पूँछ सी उसकी भारी दुम जिधर लहराती पोंछ सारी भूमि समतल कर जाती। हर भरते डग पर योजन दो योजन तक डगर कांपती। आधे कोस के बदन वाले के विंध्वस को देख मन ही मन कांपते हुऐ कोसता हरेक जीव। भोजन की चाहत में मनुज गंध पा के बेफिक्र हो, वो इसी दिशा में आ चला। तत्क्षण, छठी इंद्री ने अनजाने के आक्रमण का अहसास, जंगलजन को स्वतः दिया। एक दूजे को तड़ से सीटी, ढोल, नगाड़े, बजा चेता कर पवन वेग से परकोटे तक आ, ईऽ .. आऽ.., हूआऽऽ... ... ऽ.. , ऊळू..ऽ..लूऽ . चिल्लाते, तीर-तरकस ताने, भाले-बर्छी संभाले, इस्पाती जाल बिछाए, वे शूरवीर स्वजनों को सुरक्षा देने फौलादी दीवार बने। अधीर तीष्ण नयनों की कतारको अजुबे का दीदार होते ही एकदम संगसंग योजना संग प्राणघातक प्रहार प्रारंभ किया। भूखा वह भयावह भूनने को जब बरसाता अनल। प्रतिकार में बदन पर पाता बरसती शोंलो को ले बाणों की बरसात। डटे बिंदास झटभेरा। दोनों ने ही नहीं सीखा अभी तक परास्त होना। तिरिंग-तिरिंग कर ऊँचे वृक्षों की लटकती लताओं को झूला बना के संगी संग ले वीर कुशल नट की विद्युत गति से संजीवनी नद में ले जाते झुलसे बदन लिए साथी तन को। जीवनी शक्ति को नद जल से ले, दूने वेग से, पूरे जोश में, पल में आते खुद ही पानीपत के से मैदान में। फिर-फिर शौर्य दिखलाते, आग की लपटों में गुजर कर जानव के जबड़ों में गुंथ शूल जड़ कर। क्रोधित हो जब भारी पंजें मारता, चीते की सी फुर्ती से सरक, शेषनाग सी शक्ति से भांेकते भाले उसके पद पिंडलियों पर और संग-संग अंकुश फेंक जानव की नाकों कानों से पिरो दिए मनों भारी तनों को बांध्ेा इस्पाती तार। तब काकपाशिक के कर्ण किनारे कटते तो उसको दिन में ही दिखने लगते सितारे। सहसा सहस्त्र तीष्ण तीरों को सटीक लक्ष्य पर बरसा कर कुम्भकरणी काया के रोयें-रोयें को मनुपुत्रों ने भी बेंधा। तिनके से लगे तीखेतीरों ने बिंधे बदन में कर दीया बेदम। जवानों  के संग लंबी तीव्र गति की उन्मादी लड़ाई से ऊपजी आंखों में थकन से, तब भेजे में पहले-पहल भय की नागपफनी जन्मी। हार वह मन से, बेबस तन से, तड़पता तंग हो, मन-मार कर मानो मरने की मांग में जो उसे सूतसी लगे वो साकलों में बंधे रह कर सर्मपण भाव से, जैसे बंधे थे कभी पवनसुत एक पल को बह्मपाश में, गुमसुम वहीं माठ में, डायन का बेटा शोर न करता, निश्चल बैठ गया। खबर थी - यह भी, खासमखास, पर खबरदार करने वाले खुद खबरनवीस की ही खोजखबर है खत्म आज। आज बस गुरुजनों की गाढ़ी कमाई गवां खरीदी खबरची डिग्रीधरी के ई-खबरची के बस में कहां कि खोजे लाए कोई खबर। वैसे ही मैं भी, खराब जमाने का खबरदबाऊ पत्राकार, जो पाखंड कर झूठा दम हरदम भरकहूं ज्ञात हर खबर। उसी ढलती सर्द सुहानी शाम, सबके संग बना एक राय सीना रोब में फुलाये रंगालय मेंछक कर जाम भोले के नाम छलकाये जिसके दाम भले-भोले गांव के गिरे दबे गरीबों को ग्रांट दिलाने के नाम छल कर जुगाड़े। लिखा जाता नहीं है बिना गटकाये, पीने को बहाना बच्चन से लेखनी के मध्ुाशाला में इस मुक्तक को गाये, सबके संग मिल कर जॉम पर जामॅ छलकाये। शःऽऽ!शःऽऽऽऽ! कहना ना, कहीं, पर सच है यही! लिखना तो आता ही नहीं, बस जबान चलानी आती है। किताबें पढ़ने में तो मौत आती है, मगर रोजी के मारे याकि पेट के खातिर चोरी की राह में हाथ डाले अवैध कब्जे के भवन में बने पियक्कड़ालय की नेटपर बैठ, नए कलमदार की चुराने इक खबरें, मेरे जहन में घमासान फितुर मच रहा। जाहिर सी बात है कि चोरी करने में चूंकि लगता है डर। चुनांचे तुंरत उडेल कर, डकार डाले दो घूंट, सरकार से मारे नोटों के दम पर और बगैर ले डकार के ठाठ से बैठ नजरे गड़ाई संगणक के शीशे में। शीशे के ग्लास में तरल लाल रंग को खिड़ा, हलक में ढलका कर, पूरे शरूर में पक्की लगन से गहरे मगन से, थर्ड कंट्री की थर्ड क्लास ब्लूसाईट पर मगन हो कर नजर मार रहा था कि यकायक पड़ी नजर चकाचक स्क्राल की खबर पर, चौंका पढ़कर उड़ा! चट छः पंक्ति हटा चार जोड़ निकाल दो प्रिंट पटका एडीटर की टेबल पर। जो खुद धुत्त बैठा टेबल पे नाड़ झुकाये, लिपटाये बाहें कमसीन कन्या की कमर पे, चिहँुक उठ खड़ा हुआ तनकर। जानता खूब मैं, एडीटर की गहराई। केवल दोइंच लाल में समाई, जो घिरी शीशे के घेरे में या रेशमी चीर में।  लेकिन चाहे जो भी कहूँ मगर दिल से मानता हूँ। कमबख्त बूड्डा खूसट, खबर की परख रखता मगर परफेक्ट। वर्ना, आज तक नमस्ते तक का उत्तर न देने वाले ने, क्यों गिरा मेरे गलबाहें ऊगलवाने को पूछा ना होता-चोरी में सबसे तेज! नकल में सच में नं.एक। हसोड़ और भसोड़ चैनलों के खबरची टोली से बच-बचा कहां से मारी ये खबर। अब तक तो जमाने से मैंने भी सीख बखूबी जाना था। दो टके के वेतन लायक कभी एडीटर ने भी मुझे कहां माना था। कड़क कर तब मैंने कहा-कहते कहीं नहीं कभी सूत्रधार, सच्चे कर्मठ पत्रकार। चिढ़, परे खिसक, गटक घूंट, ऐनक नाक पर गिरा, खा जाने वाली नजरों से ताक, आँखें तरेर हुक्म ठांेका-हुजूर, आप आज ही कवर कर इस खबर पर एक ऐक्सक्लुसिव कवर स्टोरी फौरन बना लाएं! जल्दी! मैं भी घिस-घिस कर प्रधानों की खबर और संगत कर मन के मोहन से ठीक सीख चुका पक्का ढीठ बनना। अपने मतलब की लीक पर, सदा जमकर टीक कर रहना। देश और समाज की सपने तक में भी, कभी किंचित भर चिंता न करना। देश के दीन के पैसे पर कंरू नित दिन विदेश यात्रा, बेचूं खाऊँ देशवासियों का हिस्सा! लूं दलाली दबा के, करूँ घोटाले गहरे! मंगाऊँ महीना थानों से, वसूलूँ एम.सी.डी. वालों से। दबोचूं नोट सट्टेबाजों से, खोसूं खोखे-पेटी दारूबाजों से। तेरार हो या रार पर कर करार करकराते कालाधन को जमा रखूं स्वीस बैंक में पुश्त दर पुश्त वास्ते जम कर के। सालों में एक अवसर अब जा कर आया था। रूठे भाग्य में जिंदगी का पहला और यानि तय कि आखरी छींका टूट मेरे भाग में आया था अथवा कि मुझ राई के से पर्वत के नीचे आसमां से ऊँचा ऊँट आया था। पक्की बेशर्मी से नमकहरामी में विश्वरिकार्ड बनाते मैंने, जो खेत ही खा जाए वैसी उस मेढ़ से भी बढ़ के, अन्नदाता का भयादोहन करते,तब, फौरन, पलट, ठोंक कर, बिना पत्ते ब्लाईंड खेलने वाले पक्के जुआरी के जैसे, कहा- सुपर सोनिक प्लेन प्लस राह के खर्च के लिए कड़क नगद विदेशी करेंसी में रकम दें। तभी जा सकता हूँ, जब चुका दूंगा पूरा। महीनों से मालिक मकान पर जो है कि बकाया किराया। हालात की नाजुकता से तमतमा कर रह गया। ऐनक के ओट से आंखों ही आंखों में हुक्म लेखपाल को दिया। बगैर लिखा पढ़ी, मय बकाया समेत छः माह का वेतनमिंट से पहले ही किलसता हुआ घाघ चमचा अग्रिम दे कर मेरी व्यवस्था की गाड़ी पटरी पर ला कर सही कर गया। यह कोई नई बात हरगीज नहीं थी। धरती पर बोझ मैं और मेरी यायावरी जिंदगी समय के पास ही बोझ थी। समय के पास करने की हरदम एक ही खूबसूरत सी आदत थी। जानता था सिर्फ मैं कि सच में तो कुंवारा कालीदास हूँ कहीं दोयम न कहाऊँ सो विद्योत्तमाओं संग हरदम नजर आऊँ। जलती दुनिया आह भर दूर रहती थी। गुजारने खाली वक्त, निहारते खूबसूरत लब व कट उठाना मुफ्त यात्रा का लुफ्त जिंदगी जीते जा रहाथा। पकने लगे बाल, तब भी उठते वही ओछे ख्याल, मिले जे-क्लास में, बगल की सीट पे अरबपति की कोई इकलौती। अपनी बारी के इंतजार में ट्राम, बस, रेल, प्लेन और मेट्रों की लंबी-लंबी कतारों में, कोले में घुली अंगुर की बेटी को कोई ना जान पाए पर हम खुल्लम खुल्ला घूंट-घूंट गिटकाये चुप खड़े रहने को आदि चूंकि हो चुका था, इसी नाते बिना हीले हवाले बेफिक्री से फिलवक्त में खोजी गई यात्रा की नई ईजाद तीव्रगामी ट्रांसमिटेशन की कतार में निश्चिंत लगे, मैंने सारी जानकारी को हरदम सही और सारी जानने वाले बीबीसी के मुख्यालय में कार्यरत अपने भरोसेमंद बचपन के एकमात्र लगोंटिया यार के सचलभाष को मिलाया। मधुर फिल्मी धुन सुनाती सतर्क ध्वनि धुुंआधार जाते ही उसने देख मेरा नंबर बड़े बेमन से बेबसी में उठाया। मैंने अगले पल सुना भूल और भुला चुका अपना बालपन का नाम। मेरी मरी भींगी भींगी होती या रोती पलकों में कौंधे पल में वे सपने, मिल के गढ़े हमने बड़े हो मिलके पूरे करेंगे। जल्द  कत्ल कर मन-मस्तिष्क में ऊपजते स्वच्छ स्वर्णम निर्मल ख्यालों का। घोंट कर जन्मते जज्बातों का गला, घूंट गटक कर कातर स्वर में करा-जय राम जी की! तदुपरांत कुशलक्षेम को पूछा-केम छे भाया? मित्रा ने कहा-मजा में छूं। पर.... कोई रगड़ा क्या? बता मियां मिसकाल से ज्यादा आज कहां से तेरे फोन में दाम है, जो किया तुमने अपने ही मोबाईल से इंटरनेशनल कॉल है। मैंने कहा-यार, तुझसे क्या छुपाना। तेरे भरोसे हो मैंने एक काम का बीड़ा उठायाहै। घबराकर बेचारा हल्का के हल्के से फौरन बोला-मंदी है, यार उधर ना मांगयो! उसका बेहिसाब पैसा खा पी हजम कर चुका! तब भी मैंने हद कर के, बेहायी से डांटा उसी को कस के-क्या हिंदुस्तानी बस भिखारी है? जानता नहीं कहता था, सोने की चिड़िया देश। एक आध बार दस-बीस हजार पौण्ड क्या दे दिए, अहसान कर दिया अथवा खुद को तेने किस गलफत में रिर्जव बैंक इंडिया समझ लिया। याद नहीं क्या इतिहास थातुम्हारा। धोखे से फैला कर चेचक तुमने भोले अफ्रिकनों के हीरे लूट लिए। हैवानियत को मात देते जुल्म ढहा कर रेड इंडियन पर धोखे से अमेरिका कब्जा गए। खा गए उन्हीं को जो खिलाये वहां के भूखों को। ऐसा ऐसा गुनाह किया कि क्या गिनाऊँ मैं तुम्हें। ब्रेड, बर्गर, बिसलरी, बियर बेचने के लिए सोची-समझी साजिश सेयुक्लिप्टस बुआ कर भूजल उड़ा दिया। स्वार्थपरता में ऊसर बना कर नीले ग्रह से हरियाली हटा कांक्रीट का किया। कहने से क्या होता है कि राष्ट्रपति भवन तक का खर्चा लंदन ढोता है। अरे वो तो वहां तुम्हारे विक्टोरियाक्रास को किराए पर खंभा दिया है, वर्ना तो अशोकस्तभं के चार सिंह दसों दिशा में दहाड़ते देखते। और इतना सुन! बस, एक खबर में तेरे यहां मंदी का मौसम और भुखमरी का जमाना ला सकती है।अरे, अभी स्वीज बैंक में तुझे भी पता है, कितना खजाना मेरे देश का अनाम जमा है। और तू कर क्या रहा है? गोरी रानी की गुलामी। ताकि मुट्ठी गर्म करनी पड़ी या बिस्तर को, हर हाल में तुम्हारी रानी के, बस दुम हिलाते तलवे चाटते शाह-नौकरशाह की जमात हर देश में हो। जैसे हो बस सिलिकान वैली का स्वार्थ सिद्ध हो। उसके वास्ते हमारी परम्पराओं में ढांेग और पाखंड प्रचारित करके, रसातल में राष्ट्र की नई पौध पहुँचाते। कल को बस पहचाने माने पश्चिम की चिर्यस कुंस्कृति को प्रगति। पॉलुशल तुम पाँच पहर के चंद पटाखों में पाते पर प्रतिदिन फोड़तेे परमाणु बमों में नहीं। आधुनिकता होती अय्याश वेलेन्टाइन के संग बार में, मगर एकदिन की रंगीन होली गंदली होती है। संयमित मर्यादित जीवन शैली मूर्खता होली।दो पल की जिंदगी में पल-पल को गड्डे में डाला। सद्दाम और लादेन पाल, मुसलमान को बार-बार बोल बोल, हाथ में गन थमा, सोच में जहर घोल, जो खेल खेला, धर्म इस्लाम को आतंकवादी का प्रतिबिम्ब बना डाला। ईसा-मुसा के प्राणी प्रेम विचार को सूली पर चढ़ा चर्च की आड़ में क्या-क्या गुल खिला। ऐजेंट बना कबाड़ियों को कंधे पर कुरान के नाम अंधेर और नफरत का खेल जहाँ में जो किया। खोल दूं ये सारी पोल तो तुमको शांत सहती सुलाई जनार्दन तुरंत चढ़ा दे  सूली पर। सुन धराप्रवाह धमक भरा मेरा कहा, सांसे तक थम गई बेचारे की! यह अहसास पा, तबजरा प्यार से कहा-यार मेरे, एक बेजोड़ कारनामे की खबर पर डाल दे जरा एक किरण। ठाना है। मैंने भी एक सनसनीखेज खबर रचनी है, खोजबीन कर! ऐसे हट कर के किसी विषय पर। उत्साह में भर जरा खंखार कर यार ने चहक कर मुंह खोला-हाँ! धांसू तो कई समाचार है, पूछ जानना है क्या? या तू ही बता किस मेल पर और किस बात पर डाटा चाहिएगा। मैंने पूछा यार से-देखा सुना है कहीं? पकड़ा सबसे साहसी हिम्मती लोगों ने एकप्रागैतिहासिक काल का जीव! यार ने कहा-हां! है, वो यहीं। यहीं मैं भी हूं। जिस गांव में बेजोड़ कारनामाघटा, उसी गांव के मुखिया संग बैठा हूं। इंतजार में हूं उस विशेष बहुभाषिये के, जानता जो ब्रह्माण्ड की तमाम भाषायें और समझते जिसकी भाषा को विश्व के सारे सजीव हैं। मैंने कहा-मुऐ आना मुझे भी है, वहीं! कहाँ है? बता, इस ठिकाना का अंक्षास-देशांतर। तब चंद पल में तू मुझे सामने पा। यार ने दे पता किया चेता- हुन आ! चट पहुँच जा! वर्ना मिंटों में होगी खबर जहां में सारी! बस पलक झपकते ही मैं वहां संप्रेषित था। मगर यह क्या? भग्न तूमीरों से पटा, रक्त सनी माटी में सना, टूटी सांकलों चप्पलों से भरा मैदान लेकिन खाली पड़ा था। एक थर-थर कांपता स्वेद से सना इंसा को कस के धरे बंधु भींगी बिल्ली सा हैरां चुप खड़ा था। मैंने पूछा यार से-देखा तो कहीं नहीं!! वो जानव जो कहा, क्यों सूना यहाँ? बोलो भी अभी। सारे जहाँ में होगी हंसी, खबर कहीं झूठी तो नहीं। यार ने कहा-कलम की कसम। नहीं!नहीं!नहीं! जब कही आने की तुमने तो बस यही कहीभाषाविद् से कि मुखिया से कहे कि एक की जगह मंगा दे दो कप टी के! कि बस उस की सुन बात, पता नहीं की हुआ।। मानो भूचाल आया या भूत उनके पीछे लगा। जो सुना सबने जड़ हुए सारे पल में, कहा कुद मुखिया ने खुफिया सी भाषा में कि चिल्ला सब भागे चीखते-चिल्लाते। अनोखे गाँव के साहसी मर्द-महरारू के साथ ठोर डंगर ही नहीं पिजरा तोड़ परिंदे तलक बिना पीछे देखे भाग लिए और तो और प्रायः मृतप्राय, डायनासोर भी भला क्यों भय खाये दुम दबाये रूदन चित्कार करता बंधन उखाड़ कट पड़ते सांकलों में लिपटे बंधे बेहाल हाल ही में नदी किनारे मुँह बालू में छुपाये जाने कहां भाग निकला। हैरत जमा निराशा में मेरा मन डूबा। दिल के अरमां आँख के शोले बने। तनबदन में आग लग गई। मित्र मेरा मिजाज जानता था। विकटता स्थिति की समझ उसकी प्रतियुत्पन्नमति ने प्रश्न किया उसी वक्त जबानकर से-है!रे! बता प्यारे, क्या कहा तेने? समझा जरा, माजरा क्या घटा रे! भाग क्यों गए सारे? क्यों चिल्ला रहा था सरदार बता हमें। कह रहा क्या जानव बता रे। अंत में भरकस नियंत्रण में जुबां को बंद बत्तीसी में सहेज दांत पीसते घूर जो डाली इंटरप्रेटर पर नजर, खुद की गर्म धरा से भीगे पदतल में खड़े कांपती लड़खड़ाती आवाज में रूधें गले से बेचारे अनुवादक ने डर-डर के बोला-बस वही कहा था साहब से सुनकर, जरा समझा कर व विस्तार से कि पीयेंगे दो कपटी, अबी पल दो पल में आने वाला है, वो भी, सबसे गहरे सात समुंदर सबमें चौड़ी तेरह नदी पार से एक हिन्दवी पत्रकार, सो दो चाय को कहे! यह सुनकर शेर दहाड़ पर गौ की तरह स्तंभित हो खड़े हुए गांववालों की बिल्ली देखे कबूतर की भांति आंखें बंद हो मुर्छित अवस्था हो गई। इस स्थिति में सबसे पहले होश संभाल कर वयोवृद्ध व प्रधानपंच ने छाती पीटते हुए सावन के प्यासे पपीहा के क्रंदन स्वर में सबको कहा-भागो! भागों! जान बचाओ! दूर सात समुंदर पार के वीरों-महावीरों के महान देश से लेने को हमारी खबर “वो” यहाँ आने वाला है! शताब्दियों तलक दौरें दुश्मन जमाना रहा पर मिटा न सका उनकी हस्ती आज तलक कोई भी-कभी भी! तूफां भी रूख बदल कर के रूक गया और हरदम को थम गई फिजाएं भी इनकी सीमा में आकर। सीमा पार से आकर शक, हूण, ओह्म, तुर्क, डच, फ्रेंच, कुर्द, मुगल मिट गए, सिमट गए, खो गए खुद! हो गया खाली हाथ, जगजीता सिकंदर भी आकर। खड़ी हो,  उलट ली उसकी विश्वजयीवाहनी डरकर। दारूल बनाने के नाम लूटपाट वाली चगेंज-तैमुरकी कबाइली नस्ल के खुद ब खुद दिमाग बदले। समझ बूझ कर फिकरापस्ती खुफ्रती दिमाग से निकल से बनाई दीन-ए-इलाही जरा सबसे हट कर। खैबर और बोलन की पतली गली से घुसने वाले शैतान के वहशी नुमाईंदो के रंग-ढंग सारे गए बदल। खुदा के नाम पर शैतान का कहर बरसाने वाले काबायली खुद ही, हो सही से सीखे कुरान का सार सही अर्थों में यहीं आकर। जलाया जिनने ज्ञानसागर नालंदा-तक्षसिला का। उनके अनुगामी के वंशज बनके डॉ. अब उलप आखिर जै अतुल ज्ञान का पुनः निरोपित कराने का कमाल करगए। गजनी, गजनवी, गौरी, नादीरशाह, अब्दाली ढेर सारे मल्लेछ लूट ले गए पर नप गए बाल्शितों में। जिनके साम्राज्य का सूरज डूबता न था, काले दिलवाले गोरों के सितारे खो गए हरदम को गर्दिश में, वहां के एक अकेले निहत्थे लगोंटधरी से। गोरे विदेशी पंजें ने विषैली फूट डाल तब भी डिगा न सके। बिन दवा झेल गए, चुप दबा गए, दिल में राम, कृष्ण, बुद्ध के वंशज बटने बिखरने के दर्द को भी। ऐसे सौ करोड़ से ज्यादा सूरमाओं वाले में  भी  टॉप के छटें-छटायें जो चुन-चुन कर 540 आये, उनमें सत्ता की  हवस में मिंट में मटियामेट प्रिय-अप्रिय को करने की कुब्बत है ऐसे वो खादी वर्दी वाले भी और वैसे ही दिमागी खाकी वर्दी धारी भी जो ढक्कन खोलने के वक्त विभिन्नता में बेजोड़ एकता रखे, फटिक मेें उसी जनता को जोतते जिससे मिली तंख्वाह पे जीते, केवलमात्र, अभी आने वाले इसी खाकी चमड़ी वाले से ही बस खौफ खाते। सवा सौ करोड़ में खूंखारतम् नापाक नये घनाघन दिल दहलाने वाले गनधारी भी रूबरू हो सलाम ठोंक झलक दिखलाने वास्ते जिसकी चमचागिरी करते।  अंधेर युग वाले जमात को सांप सूंघ जाता। इस डेढ़ पसली के ढाड़ी वाले कुर्ते धारी का नाम सुनकर। ऐसे उस खतरनाक से हे! मेरे प्रिय, हे! मेरे आश्रीत, हे! मेरे मित्रों, हे! मेरे सहोदर, हे! मेरे वीर परिजनों। जरा हिम्मत से काम लो, स्तब्ध नहीं रहो, इस नश्वर शरीर की मृत्यु से तनिक भी ना भय खाओ।हे! मेरे अनुज, हे! मेरे शूरवीर, हे! मेरे महान पूर्वजों की दिलेर-बहादुर संतानों, चलो सब समवेत भागो। सदा युद्धभूमि में आगे आकर प्राणोंत्सर्ग करने में तत्पर वीर पूर्वज स्वर्ग से तुम्हें आशिष दे रहें हैं। अकेला मत समझो तुम खुद को कभी कायर मत बनो, दम लगा कर पतली गली से निकल भागो! अपनी परंपराओं की रक्षा के लिए भाग कर मांद में, खोह में, बांबी में, कंदराओं में, वीरानों में, रेगिस्तानों में, बीहड़ों, भवरों में, खदानों में, पातालों में, चुप छुप जाओ औ यों अपनी जान बचाओं। हे! महिलाओं, हे! वीरांगनाओं, हे! कन्याओं, मत घबराओं! मैं भी तुम्हारे साथ संग-संग भाग रहा हूं। भागों!! हे! पुत्री, हे! मर्दानी, अपनी लाज बचाओं, शीलबचाओं, आंचल ले जाओ। पापी रावण से बचने को सीता की भांति पवित्र अग्नि में लुक छुप जाओ। हे! पुत्रों, हे! वीर नवजवानों। कसम तुम्हें है, अपने कदम न तुम थामों। पैरों को तुम पंख लगा दो। कालीख न लग जाये हमारे जाति के शौर्यपूर्ण इतिहास पर, सो शक्ति भर तुम फौरन तीव्रता से भागो। जल्द उल्टे पैर भागो। अपने बीज बचाओ! अपना कुल वंश बचाओं। अपनी शुद्धता संस्कृति बचाओ। हे! मेरे आल्हा-ऊदल सम! हे! मेरे लव-कुश प्रतिबिम्ब! हे! मेरे नयन ज्योतिपुंत! हे! गुणी सुजान! ज्ञानी नचिकेता को याद करे। अकाल मृत्यु का नहीं भय करो। करो सामना वीरोचित- भाग यहां से इस संकट के पल का। यहां से तीव्र गति से भाग तुम्हें बचना, तब देखना इतिहास में तुम्हारा नाम स्वर्णाक्षरों में खुदा होगा। अनमोल गीता ज्ञान को स्मरण कर मित्रा-संबंधी-रिश्तों के मिथ्यामोह बंधन के चोले को अविलंब त्यागो। प्रभु नाम ले रणछोड़ के, अपने ज्ञान और शिक्षा की रक्षा करने, अपने सत् को रक्षित करने भागो!! हे! वृृद्धों, हे! मृत्युदेव की प्रतिक्षा में मेरे मित्रों, हे! कब्र में पैर डाले वीरों, अपनी जवानी के शौर्यपूर्ण कार्यों को याद करो। परीक्षा की यह भीषणतम् घड़ी आन पड़ी है। दिखला दो तुममे महासमर के भीष्मपितामह सा बल। डटो ना! तुम डटकर तीव्र गति से भागो। कुल्टी वाणी बाणों से क्षत-विक्षत होगा आत्मा पर तो भी, हाँ, तो भी हाँ ऽ.. हाँऽ.. !!! बर्बरीक से रहना जीवत मस्तिष्क लिए। न थमना! जीन को संरक्षित करने, मन मस्तिष्क को विनाशकारी विकृती से बचाने बस लाठी टेक अकेले भागो। ईऽ ... आऽ.. .ऽ., इऽा, इॉ,.. ऽऽऽ. बस भागो। भागोऽ!!  शैतानों में महाशैतान आ रहा  लेने हमारी महाखबर। उसका मुकाबला जब नहीं कर सकता..ऽ..कोई भगवान अवतार भी ....  क्योंकि आने वाला है,  वो

एक रायसीना रोड का आदमी।

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अजमेर । स्थानीय द्रौपदीदेवी सावंरमल बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय की कक्षा 12वीं की विज्ञान वर्ग की छात्रा शिवानी के पी.एम.टी. में 98 रैंक प्राप्त कर विद्यालय के गौरव को ओर अधिक बढ़ाया है।
विद्यालय प्राचार्या  रंजना अग्रवाल ने शिवानी को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। प्राचार्या ने बताया कि छात्रा शिवानी ने सेल्सियस संस्था से मार्ग दर्शन प्राप्त किया। इस संस्था में डॉक्टर्स ही पी.एम.टी. की तैयारी करवाते है। यहां बी.पी.एल. छात्रों को बिना किसी शुल्क के पी.एम.टी. की तैयारी करवाई जाती है तथा अन्य विद्यार्थियों से भी सलेक्शन ही होने पर कोई फीस नहीं ली जाती है। यह संस्था डॉ. अभिमन्यु कुमावत के मार्ग दर्शन में संचालित है। इस अवसर पर डॉ. अभिमन्यु कुमावत द्वारा विज्ञान की छात्राओं को पी.एम.टी. में सफलता प्राप्त करने हेतु मार्ग दर्शन प्रदान किया गया। डॉ. कुमावत ने छात्राओं को बताया कि एम.सी.क्यू. की प्रेक्टिस कौन-कौनसी पुस्तक से करें। किस विषय को कितना समय देना है, परीक्षा के लिए अपने आपको कैसे तैयार करे। सोशल साइटस से दूर रहे, एकाग्रता कैसे बनाए, परीक्षा की तैयारी के समय खान-पान किस प्रकार का होना चाहिए। Aaj Ki Delhi.in/ The 24x7 news/ Indian news Online/ Prime News.live/Astro Dharm/ Yograaj Sharma/ 7011490810